और तुम कह रहे हो मैं लड़खड़ा रहा हूँ
मुझे पता हैं क्यू धूल उड़ रही हैं
मुझे पता हैं किधर आँधी चल रही हैं
मैं गिरा नहीं हूँ, मैं लड़खराया भी नहीं हूँ
मैं धरा पर ही खड़ा हूँ और सीधें चल रहा हूँ
और तुम कह रहे हो मैं लड़खड़ा गया हूँ - 1
तुम्हे शायद भ्रम हुआ हैं
तुमसे शायद ग़लती हुई हैं
तुम शायद भटक गये हो अपने आकलन में
देखो-
मैं ज़मीन पर ही खड़ा हूँ
मैं ज़मीन पर ही खड़ा हूँ
अपनी मंज़िल से ना भटका हूँ
ना मैं रुका हूँ, ना मैं टूटा हूँ|
और तुम कह रहे हो मैं लड़खड़ा गया हूँ - 2
सुनो-
आँधी मेरा रास्ता रोक सकती नहीं
पाषाण मेरा रास्ता मोड़ सकता नहीं
मैने पहले भी आँधियों को रोका हैं
मैने पहले भी पाषाण को चटकाया हैं
तुम किसी ग़लतफमी में ना रहो
मैं धरा पर ही खड़ा हूँ और सीधे चल रहा हूँ
और तुम कह रहे हो मैं लड़खड़ा गया हूँ - 3
~शलभ
Sunday, September 20, 2015
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